सिदार शायद ये भूल गया था कि कॉलेज के अंदर की लीडरशिप और बाहर की लीडरशिप मे बहुत डिफरेन्स होता है... कॉलेज के अंदर आप कुछ भी कर सकते है लेकिन कॉलेज के बाहर आपको कोई कुछ भी कर सकता है... सिदार से यही चूक हो गयी, वो एनटीपीसी की स्ट्राइक को कॉलेज के अंदर होने वाली स्ट्राइक समझ बैठा था, लेकिन वो स्ट्राइक करते वक़्त ये भूल चुका था मामला सरकार. से था जिनके हाथ मे पुलिस की बागडोर होती है.. .ना जाने क्यूँ मुझे ऐसा लग रहा था कि सिदार की मौत स्ट्राइक मे किसी एक्सीडेंट की वजह से नहीं बल्कि किसी की सोची समझी साजिश थी ...मैं सिर्फ़ ऐसा सोच सकता था कुछ कर नही सकता था और इस समय मैं सिदार की डेथ बॉडी के सामने खड़ा उसको निहार रहा था....ये सच है की मौत ,मरने वालो को इस दुनिया से आज़ाद कर देती है लेकिन एक सच ये भी है कि वही मौत उस मरने वाले से कईयों को जोड़ भी देती है....पता नही ,पर मुझे सिदार की लाश देखकर ना जाने ऐसा क्यूँ लग रहा था कि जैसे मेरी ज़िंदगी की बहुत बड़ी खुशी सिदार के साथ चली गयी है और मेरे साथ अब जो भी होगा, बुरा ही होगा... Freaking Sixth Sense.
मैं सिदार के साथ उस समय भी नही था जब वो कॉलेज छोड़ रहा था और मैं उसके साथ तब भी नही था जब वो ये दुनिया छोड़ रहा था.... सिदार की मौत के तीन दिन बाद अनाथ बच्चो को पालने वाली उस संस्था.. ADLER ORPHANAGE से एक आदमी हॉस्पिटल मे आया और उसने सिदार के शरीर को कॉलेज के पास वाले शमशान घाट मे उन्ही पंच तत्वो मे विलीन कर दिया जिन पंच तत्वो से मिलकर उसका शरीर बना हुआ था और ये मेरी बदक़िस्मती थी कि उस आख़िरी वक़्त मे भी मैं वहाँ मौजूद नही था...क्यूंकी हॉस्पिटल के डॉक्टर्स ने विपिन भैया से सॉफ कह दिया था मुझे वहाँ नही जाना चाहिए, पर मै जब नहीं माना तो... सालो ने दर्द के इंजेक्शन के बहाने नींद का इंजेक्शन दे दिया.. मै घंटो गहरी निद्रा मे रहा और उस घटना के एक महीने से अधिक बीत जाने पर मैं पूरी तरह शारीरिक रूप से ठीक हुआ. मेरे दोनो हाथ,दोनो पैर अब बिल्कुल सही-सलामत थे और पहले की तरह मज़बूत भी...मेरी कमर और शोल्डर भी अब पहले की तरह स्ट्रॉंग हो चुके थे...लेकिन हॉस्पिटल के उन आख़िरी दिनो मे मैने डॉक्टर्स को ये जताया की अभी मुझे पूरी तरह से ठीक होने मे कुछ दिन का समय और लगेगा... डॉक्टर्स ने मेरी एक्स-रे रिपोर्ट देखी और मुझे ,मेरी हथेलियो को ओपन-क्लोज़ करने के लिए कहा तो मैने जान बूझकर वैसा नही किया और कहा कि मुझे ऐसा करने पर दर्द होता है....मेरी एक्स-रे रिपोर्ट देखकर डॉक्टर्स को जब यकीन हो गया की मैं अब पूरी तरह से ठीक हूँ तो उन्होने मुझे बिना किसी सहारे के चलने के लिए कहा और मैं जानबूझकर थोड़ी दूर चलने के बाद ज़मीन पर गिरा... ताकि उन्हे वो यकीन हो जाए जो मैं उन्हे यकीन दिलाना चाहता था....
"एक्स-रे रिपोर्ट के मुताबिक़ तो सब कुछ सही है...फिर तुझे प्राब्लम कहाँ हो रही है..."विपिन भैया ,जो कि इस समय मेरे पास बैठे थे उन्होने एक्स-रे रिपोर्ट उठाकर कहा...
"मै डॉक्टर थोड़ी हूँ... मुझे क्या पता. शायद हड्डियो को पुरानी जगह पर फिट होने मे कुछ टाइम लगे..."
"मतलब कि मुझे कुछ दिन और यहाँ रुकना पड़ेगा...."रिपोर्ट को एक किनारे रखते हुए भैया ने कहा...
"अरे नही...आप क्यूँ रुकोगे, डॉक्टर ने कहा तो की अब तो मैं नॉर्मल हूँ,अब आप घर जाओ...थोड़े दिन बाद मैं भी हॉस्टल से चला जाउन्गा....
"Sure..??.."
"हां...आप जाओ"
"ठीक है तो मैं आज ही रात की ट्रेन से निकलता हूँ..."अपनी घड़ी पर टाइम देखते हुए उन्होने कहा"अरुण को मैं कॉल कर दूँगा ,वो कल आ जाएगा...."
"वो तो क्या ,उसका बाप भी आएगा..."
"क्या..."
"कुछ नही...आप जाने की तैयारी करो ..bye..??"
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विपिन भैया को घर वापस भेजने के लिए मैं इतना उतावला इसलिए था क्यूंकी उनके यहाँ रहते मैं वो नही कर पाता जो मैं अब करने जा रहा था ...जो मैं अब करने वाला था. उसके लिए बड़े भैया का इस शहर से जाना बहुत ज़रूरी था और इसीलिए मैने बहुत ज़ोर देकर उन्हे जाने के लिए कहा...
दूसरे दिन अरुण मुझसे मिलने आया और आते ही उसने मेरे बेड के बगल मे रखी टेबल के उपर देखा की कुछ खाने-पीने का समान रखा है या नही और जब उसे कुछ नही मिला तो मेरे सर के छोटे-छोटे बाल को खींच कर बोला...
"पूरा खा गया बे टकले, कुछ तो मेरे लिए छोड़ा होता...."
"अभी लंच आया नही ,आता होगा थोड़ी देर मे...."
"चल सही है...वैसे भी मुझे इस वक़्त सॉलिड भूख लग रही है..."
"बाइक पर आया है क्या..."
"और नही तो क्या हॉस्टल से 20 किलोमेटेर पैदल आउन्गा...टकले, तेरा दिमाग़ आजकल काम नही कर रहा है क्या..."
"गुड, मैं बहुत दिनो से इस मौके की तालश मे था..."एक पल मे कूदकर खड़ा होते हुए मैने कहा...
"What the heck...ये क्या था बे... कल तक तो तू ढंग से चल भी नही पा रहा था और आज एक दम से कूद कर खड़ा हो गया...."
"वो सब तू अभी नही समझेगा.."हॉस्पिटल द्वारा मुझे दी गयी मरीज़ो की ड्रेस उतारते हुए मैने वो कपड़े पहने जो मेरा भाई मुझे देकर गया था....
"साला कल तो एक चम्मच से खाना खाते वक़्त तू दर्द से कराह रहा था और आज तो तुझे देखकर लगता है की अभिच अपने बिना दर्द के दो बार लगातार हिला लेगा... "
"वो मैं नही कर सकता..."
"क्यूँ..."
"क्यूंकी कल रात ही हिलाया है, मैने... नींद नहीं आ रही थी तो"
"किसको...सोचकर... दीपिका मैम को...??"
"नाम मत ले उस R. दीपिका का... ला बाइक की चाभी दे..."
"चूतिया है क्या...अगर कोई तुझे देखने आ गया तो..."
"अबे ये ICU नही है जहाँ हर 15 मिनट ्स मे मुझे देखने कोई ना कोई आता रहेगा...इतने दिन बेड पर झूठी आक्टिंग करते हुए मैने जो नोटीस किया है उसके अनुसार अभी एक बार लंच सर्व करने के लिए हॉस्पिटल वाले आएँगे और फिर लंच देने के एक घंटे बाद ये देखने आएँगे कि मैं गोली,दवाई सही टाइम पर ले ली या नही... डेली टूर जो डॉक्टर्स मारते है..वो आलरेडी सुबह सुबह मार चुके है... इसलिए जब नर्स खाना देने आए तो उनसे कहना कि मैं बाथरूम गया हूँ और जब वो एक घंटे बाद दोबारा आएगी तो ये बोलना की मैं फिर से बाथरूम गया हुआ हूँ....समझा"
"घंट समझा, सीधे से लेट जा ...और वैसे तू कहाँ जाने की प्लॅनिंग कर रहा है..."मेरे हाथ से चाभी छीनते हुए अरुण ने पुछा....
"यदि मैने तुझे ये बता दिया तो तू मुझे जाने नही देगा और यदि तूने बिना सवाल-जवाब किए मुझे जाने दिया तो तुझे मैं वापस लौटने पर बहुत बड़ी खुशख़बरी दूँगा....सोच ले"बेड पर वापस बैठकर मैने कहा...
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अरुण कुछ देर तक किसी सोच मे डूबा रहा और फिर मुझे बाइक की चाभी पकड़ाते हुए बोला"जहाँ जाएगा,वहाँ से खाना खाकर आना... क्यूंकी तेरा लंच तो मैं सफ़ा चट करने वाला हूँ..."
"ओके...अपना मोबाइल, वॉलेट भी दे.."
"वो क्यूँ..."तीसरी बार चौक कर अरुण ने पुछा...
"तेरे लिए लड़की जुगाड़ करने जा रहा हूँ... अब जल्दी से वॉलेट और मोबाइल निकाल.. ताकि मै जल्दी से निकल लूँ..."
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हॉस्पिटल से बाहर आकर मैं जब पार्किंग की तरफ बढ़ा तब मुझे ध्यान आया कि मैने अरुण से बाइक का नंबर तो पुछा ही नही की किसकी बाइक लेकर आया है और उसका मोबाइल भी मै अपने साथ ले आया था. तो अब उसे कॉल भी नही कर सकता....
"शायद उसने पार्किंग की स्लिप अपने पर्स मे डाली हो... "क्या करूँ ,क्या ना करूँ की उस अजीब सी उलझन मे फँसे मेरे 1400 ग्राम के दिमाग़ की बत्ती जैसे एका एक जली और तुरंत अरुण का वॉलेट निकाल कर चेक किया ...जिसमे मुझे अरुण की बाइक की स्लिप मिल गयी और मैं बाइक लेकर सीधे हॉस्पिटल से बाहर निकला
मेरा पहला टारगेट था नौशाद, क्यूंकी नौशाद को सबक सिखाने के लिए आज से अच्छा मौका मुझे कभी नही मिलता और इस वक़्त सारी सिचुयेशन ,सारी कंडीशन सेम वैसी ही थी जैसा कि मैने सोचा था...यहाँ तक की atmospheric temperature और pressure भी...